Posts

Showing posts from May 21, 2017

मन्त्रों से करें रोग निवारण

{💮मन्त्रों से करें रोग निवारण💮} 〰〰〰〰〰〰〰〰 🔺कैंसर रोग "ॐ नम: शिवाय शंभवे कर्केशाय नमो नम:।" यह मंत्र किसी भी तरह के कैंसर रोग में लाभदायक होता है। 🔺मस्तिष्क रोग "ॐ उमा देवीभ्यां नम:।" यह मंत्र मस्तिष्क संबंधी विभिन्न रोगों जैसे सिरदर्द, हिस्टीरिया, याददाश्त जाने आदि में लाभदायी माना जाता है। 🔺आंखों के रोग : "ॐ शंखिनीभ्यां नम:।" इस मंत्र से जातक को मोतियाबिंद सहित रतौंधी, नेत्र ज्योति कम होने आदि की परेशानी में लाभ मिलता है। 🔺हृदय रोग "ॐ नम: शिवाय संभवे व्योमेशाय नम:।" हृदय संबंधी रोगों से अधिकांश लोग पीड़ित होते हैं। इसलिए अगर वे इस मंत्र का जप करें, तो उन्हें लाभ मिलता है। 🔺स्नायु रोग "ॐ धं धर्नुधारिभ्यां नम:। " 🔺कान संबंधी रोग "ॐ व्हां द्वार वासिनीभ्यां नम:।" कर्ण विकारों को दूर करने में यह मंत्र आश्चर्यजनक भूमिका निभाता है। 🔺कफ संबंधी रोग "ॐ पद्मावतीभ्यां नम:। " 🔺श्वास रोग "ॐ नम: शिवाय संभवे श्वासेशाय नमो नम:।" 🔺पक्षाघात रोग "ॐ नम: शिवाय शंभवे खगेशाय नमो नम:...

एकादशी में चावल क्यों नही खाने चाहिए-वैज्ञानिक तथ्य*

❌❌❌ *एकादशी में चावल क्यों नही खाने चाहिए-वैज्ञानिक तथ्य* हमारे शास्त्रों में जो भी व्रत-पर्व,अनुष्ठान बताये गये हैं, उनका धार्मिक महत्व तो होता ही है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत उपयोगी है। एकादशी व्रत का मन से संबंध शास्त्रों के अनुसार- आत्मा रथी है, शरीर रथ है और बुद्धि उस रथ की सारथी है।  शरीर में कुल 11 इंद्रियां है और मन एकादश यानि ग्यारहवीं इंद्री है *एकादशी को चंद्रमा आकाश में 11वें अक्ष पर होता है। इस समय मन की दशा बहुत चंचल होती है।* इसीलिये एकादशी व्रत करके, मन को वश में करने का प्रयत्न किया जाता है। *चंचल मन को एकाग्र करने के लिये एकादशी व्रत बहुत उपयोगी है।* अगर आप मन से अशांत रहती हैं, या मन किसी अच्छे काम में नहीं लगता तो एकादशी का व्रत रखने से आपका मन बिल्कुल शांत हो जायेगा। शांत मन से आप जो भी काम करेंगे उसमें सफलता अवश्य मिलेगी। 👉-चंद्रमा का संबंध मन से है और जल उसका प्रधान देवता है। 👉-चावल की खेती में सबसे ज्यादा जल की आवश्यकता होती है यानि चावल भी जल प्रधान है। 👉-एकादशी को चावल खाने से, चंद्रमा की किरणें, शरीर के जल तत्व में हलचल मचायेंगी, ल...

तिथि अनुसार आहार-विहार

तिथि अनुसार आहार-विहार... ( शास्त्रवचन ) प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है। षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है। अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है। एकादशी को शिम्बी(सेम), द्वादशी को पूतिका(पोई) अथवा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34) अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38) रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए। (ब्रह्मवैव...