सफ़ेद दाग

निरोगी काया अनमोल रत्न*

सफ़ेद दाग। LEUCODERMA
आधुनिक विज्ञानं ने जहाँ आज हर जगह पर विजय पायी हैं वही कुछ जगह पर ये असहाय सी नज़र आती हैं ऐसी ही एक बीमारी हैं सफ़ेद दाग।
सफ़ेद दाग रोग ऐसा हैं कि जिसको एक बार हो जाए तो वो व्यक्ति हीं भावना से ग्रसित हो जाता हैं और इलाज के नाम से बहुत ठगा जाता हैं। लोग बढ़ चढ़ कर सही करने का दावा करके लोगो को ठगते हुए नज़र आते हैं।
इसका उपचार कुछ सालो पहले आयुर्वेद में बहुत आसान था जब कुछ भस्मो से इसका उपचार योग्य वैध कर दिया करते थे, आज कल भस्मो का सही मिश्रण सही अनुपात न पता होने के कारण ये कला लुप्त होती जा रही हैं।
आज कल आयुर्वेद में जो उपचार हैं वह थोड़े लम्बे हैं इसलिए मरीज को धैर्यपूर्वक इसको लगातार जारी रखना पड़ता हैं।
हम यहाँ आपको कुछ विशेष उपचार बता रहे हैं जो बहुत से रोगियों पर सफलता से प्रयोग किया गया हैं।
बावची का तेल और नीम का तेल सामान मात्रा में मिला कर रोग वाली जगह दिन में २ बार लग्न चाहिए। और इसके साथ बावची का चूर्ण तुलसी के पत्तो को सुखा कर बनाया गया चूर्ण और चोपचीनी का चूर्ण सामान मात्रा में मिला कर हर रोज़ ३ ग्राम सुबह शाम पानी के साथ ले। और ये चूर्ण लेने के २ घंटे पहले और बाद में कुछ ना खाए। और साथ में रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला गुनगुने पाने के साथ ले।
कई बार ये प्रयोग करने से कुछ साइड इफ़ेक्ट नज़र आते हैं, अगर ऐसा हो तो ये प्रयोग बंद कर दे और जब तक साइड इफ़ेक्ट शांत हो तो फिर दोबारा कम मात्रा में शुरू करे।
और सुबह खली पेट गेंहू के जवारे का रास ज़रूर पिए। आपका ये चर्म रोग कुछ दिनों में गायब हो जायेगा। गेंहू के जवारे के लिए ये पोस्ट पढ़े।
इसके साथ लौकी का जूस भी सुबह खाली पेट पिए, और इस जूस को बनाते समय इसमें 5-5 पत्ते तुलसी और पुदीने के भी डाल ले।
बावची एक ऐसी औषधि है जिस से आज कल की आधुनिक सफ़ेद दाग की औषधियां भी बनायीं जाती हैं।
जानिए अन्य उपचार।
१) आठ लीटर पानी में आधा किलो हल्दी का पावडर मिलाकर तेज आंच पर उबालें, जब ४ लीटर के करीब रह जाय तब उतारकर ठंडा करलें फ़िर इसमें आधा किलो सरसों का तैल मिलाकर पुन: आंच पर रखें। जब केवल तैलीय मिश्रण ही बचा रहे, आंच से उतारकर बडी शीशी में भरले। ,यह दवा सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। ४-५ माह तक ईलाज चलाने पर आश्चर्यजनक अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।
२.) बाबची के बीज इस बीमारी की प्रभावी औषधि मानी गई है।५० ग्राम बीज पानी में ३ दिन तक भिगोवें। पानी रोज बदलते रहें।बीजों को मसलकर छिलका उतारकर छाया में सूखालें। पीस कर पावडर बनालें।यह दवा डेढ ग्राम प्रतिदिन पाव भर दूध के साथ पियें। इसी चूर्ण को पानी में घिसकर पेस्ट बना लें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। अवश्य लाभ होगा। दो माह तक ईलाज चलावें।
3) बाबची के बीज और ईमली के बीज बराबर मात्रा में लेकर चार दिन तक पानी में भिगोवें। बाद में बीजों को मसलकर छिलका उतारकर सूखा लें। पीसकर महीन पावडर बनावें। इस पावडर की थोडी सी मात्रा लेकर पानी के साथ पेस्ट बनावें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर एक सप्ताह तक लगाते रहें। बहुत ही कारगर उपचार है।लेकिन यदि इस पेस्ट के इस्तेमाल करने से सफ़ेद दाग की जगह लाल हो जाय और उसमें से तरल द्रव निकलने लगे तो ईलाज कुछ रोज के लिये रोक देना उचित रहेगा।
4) एक और कारगर ईलाज बताता हुं--
लाल मिट्टी लावें। यह मिट्टी बरडे- ठरडे और पहाडियों के ढलान पर अक्सर मिल जाती है। अब यह लाल मिट्टी और अदरख का रस बराबर मात्रा में लेकर घोटकर पेस्ट बनालें। यह दवा प्रतिदिन ल्युकोडेर्मा के पेचेज पर लगावें। लाल मिट्टी में तांबे का अंश होता है जो चमडी के स्वाभाविक रंग को लौटाने में सहायता करता है। और अदरख का रस सफ़ेद दाग की चमडी में खून का प्रवाह बढा देता है।
५) श्वेत कुष्ठ रोगी के लिये रात भर तांबे के पात्र में रखा पानी प्रात:काल पीना फ़ायदेमंद है।
6) मूली के बीज भी सफ़ेद दाग की बीमारी में हितकर हैं। करीब ३० ग्राम बीज सिरका में घोटकर पेस्ट बनावें और दाग पर लगाते रहने से लाभ होता है।
७) एक अनुसंधान के नतीजे में बताया गया है कि काली मिर्च में एक तत्व होता है --पीपराईन। यह तत्व काली मिर्च को तीक्ष्ण मसाले का स्वाद देता है। काली मिर्च के उपयोग से चमडी का रंग वापस लौटाने में मदद मिलती है।
८) चिकित्सा वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सफ़ेद दाग रोगी में कतिपय विटामिन कम हो जाते हैं। विशेषत: विटामिन बी १२ और फ़ोलिक एसीड की कमी पाई जाती है। अत: ये विटामिन सप्लीमेंट लेना आवश्यक है। कॉपर और ज़िन्क तत्व के सप्लीमेंट की भी सिफ़ारिश की जाती है।
बच्चों पर ईलाज का असर जल्दी होता है| चेहरे के सफ़ेद दाग जल्दी ठीक हो जाते हैं। हाथ और पैरो के सफ़ेद दाग ठीक होने में ज्यादा समय लेते है। ईलाज की अवधि ६ माह से २ वर्ष तक की हो सकती है।
परहेज :- अंडा मॉस मछली तेल, डालडा घी या वनस्पति तेल लाल मिर्च शराब नशीली चीजे खटाई अरबी भिन्डी चावल इनका परहेज करे।
खाए :- काला चना, चुकंदर, गाजर, पपीता, अंजीर, खजूर, काले तिल,चोकर सहित आटे की रोटी, शुद्ध घी, खिचड़ी, मूंग, बादाम, किशमिश, हल्दी, तौरई इत्यादि।
आशा करता हूँ के ये जानकारी आपको अच्छी लगी होगी ।
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��सफेद दाग क्या है ?��
सफेद दाग भी एक तरह का कुष्ठ ही है, इसमें कुष्ठ की तरह चमड़ा बिगड़ जाता है। इसमें चमड़ी सफेद पड़ जाती है। यह दो तरह का होता है- पहला सफेद एवं दूसरा लाल। परन्तु, दोनों पीड़ा दायक ही हैं। गलित कुष्ठ और सफेद कुष्ठ में अन्तर यह है कि गलित कुष्ठ (कोढ़) टपकता है अर्थात् अंगों में गलन चालू हो जाती है, अंग गल-गल कर गिरने लगते हैं और सफेद दाग में चमड़ी सफेद या लाल कलर की हो जाती है। कोढ़ वात पित्त और कफ तीनों दोषों के प्रकोप से होता है, परन्तु सफेद दाग केवल एक दोष से होता है। कोढ़ रसादि समस्त धातुओं में रहता है पर सफेद दाग रुधिर, मांस और मेद में रहता है, बस यही गलित कोढ़ और सफेद कोढ़ (सफेद दाग) में अन्तर है। चरक, भाव प्रकाश आदि ग्रन्थों में अलग-अलग तरह से एक ही बात कही है कि वात जनित सफेद दाग से पित्त जनित एवं पित्त जनित सफेद दाग से कफ जनित सफेद दाग भारी होता है। जो सफेद दाग काले रोमों वाला, पतला, रुधिर युक्त और तत्काल का नया हो तथा आग से जलकर न हुआ हो, वह साध्य होता है। इसके सिवा सफेद दाग असाध्य होता है।
खुजली, कोढ़, उपदंश, आतशक, भूतोन्माद, व्रण, ज्वर, हैजा, यक्ष्मा (टी.वी.) आंख दुखना, चेचक, जुकाम आदि छुतहे रोगों की श्रेणी में आते हैं। अतः ऐसे रोगियों के कपड़े, बिस्तर, खाने के बर्तन, मुख की सांस आदि से बचना चाहिए, नहीं तो रोग फैलने का खतरा रहता है और ऐसे रोगियों की चिकित्सा जल्दी ही करनी चाहिये जिससे यह रोग आगे न फैल सके। 
सफेद दाग निवारक नुस्खे 
1- पैर में मसलने की दवा
कड़वा ग्वारपाठा (कड़वी घृतकुमारी) के गूदा को पीतल या कांसे या स्टील की थाली में डालकर उसमें रोगी के दोनों पैर गूदे में तब तक घिसे हैं, जब तक कि रोगी के मुंह में कड़वापन आ जाये। शुरू में 30 मिनट में मुंह कड़वा हो जाता है और बाद में कम समय में ही मुंह में कड़वापन आ जाता है। यह क्रिया प्रतिदिन दोनों समय लगातार कम से कम 90 दिन तक या अधिक दाग सही होने तक करनी है। इस क्रिया से खून की सफाई होती है और जो भी खाने व दागों मे लगाने की दवा दी जाती है वह जल्दी असर करती है। इसलिए सफेद दाग के रोगी को यह दवा का उपयोग जरूर करना चाहिये।
2- सफेद दागों पर लगानें की दवा-
(अ) 100 ग्राम एल की जड़ की छाल, 100 ग्राम तेन्दू की जड़ की छाल, 30 ग्राम सफेद अकौवा (श्वेतार्क) के पत्ते की भस्म, 30 ग्राम देशी खैर को कूट-पीसकर महीन बारीक करें और 30 ग्राम बाबची के तेल में मिलाकर रख लें। सफेद दागों पर इसका गौमूत्र के साथ मिलाकर सुबह शाम लेप करें। यह लेप लगातार दाग सही होने तक धैर्य के साथ करें। इससे दाग निश्चय ही सही होते हैं, समय जरूर लगता है। 
(ब) गुलाब के  ताजे फूल 50 ग्राम, अनार के ताजे फूल 50 ग्राम तथा सफेद आक के पत्ते 10 नग, इन सबको गौमूत्र के साथ पीसकर इसमें बाबची का तेल 30 ग्राम मिलाकर रख लें। इस लेप को सफेद दागों पर प्रतिदिन दोनों समय लगायें, इससे भी सफेद दाग चमड़ी के रंग के हो जाते हैं। यह दवा धैर्य के साथ दाग सही होने तक लगायें।
(स) मालकागनी को 21 दिन तक गौमूत्र में डुबाकर रखने के बाद उसका तेल निकाल लें। उसको प्रतिदिन दोनों समय सफेद दागों पर दाग सही होने तक लगायें, इससे भी सफेद दाग सही होते है।   
3- सफेद दागों पर खाने की दवा-
(क) त्रिफला 50 ग्राम, बायबिरंग 50 ग्राम, स्वर्णक्षीरी की जड़ 20 ग्राम, मेंहदी के फूल या छाल 20 ग्राम, चित्रक 10 ग्राम, असन के फूल 50 ग्राम, अमरबेल 50 ग्राम, शुद्ध बाबची 50 ग्राम, इन सबको कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और एक डिब्बे में रख लें। 3 ग्राम दवा को गौमूत्र अर्क 10 ग्राम के साथ रात को सोते समय प्रतिदिन कम से कम 180 दिन या रोग सही होने तक का सेवन करें।
नोट- बाबची को शुद्ध करने के लिये उसके बीजों को गौमूत्र में सुबह भिगो दें। 24 घंटे बाद गौमूत्र बदल दें। गौमूत्र बदलने की यह क्रिया 6 दिन लगातार करें। फिर बाबची को गौमूत्र से निकाल कर धूप में सुखा लें। इससे बाबची पूर्णतः शुद्ध हो जाती है। इसे ही दवा बनाने के उपयोग में लें।
(ख) कालीमिर्च, सौंफ, असगंध, सतावर, सेमरमूसर ब्रह्मदण्डी, इन सभी को कूट-पीसकर इन सबके बराबर मिश्री मिलाकर डिब्बे में रख लें। तीन ग्राम दवा खाली पेट सुबह गाय के घी के साथ खायें और उसके 1 घंटे बाद तक कुछ न खायें। यह दवा रोग सही होने के एक महीने बाद तक खानी है। इससे खून शुद्ध होता है और सफेद दाग वाली चमड़ी अपने ओरिजनल कलर में धीरे-धीरे आ जाती है।
(ग) असली मलयागिरी चन्दन बुरादा 50 ग्राम, चाँदी की भस्म 12 ग्राम, सफेद मूसली 100 ग्राम, कंुजा मिश्री 100 ग्राम, छोटी इलायची 100 दाना, इन सभी को कुट-पीसकर एक डिब्बे में रख लें। 10 ग्राम दवा को 5 ग्राम गौमूत्र अर्क के साथ सुबह नास्ता के पहले एवं शाम को खाना खाने के बाद 120 दिन तक लगातार लें। साथ ही इस दवा के खाने के एक घंटे बाद खदिरारिष्ट तथा कुमारीआशव की चार-चार ढक्कन दोनों दवाओं को मिलाकर पीयें। इससे भी सफेद दाग सही हो जाते है।
परहेज - दवा सेवन समय तक प्रत्येक तरह का नमक पूर्णतः बन्द कर दें। इस रोग मेें नमक का परहेज आवश्यक है अगर हम दवा सेवन समय में नमक का सेवन करंेगे तो दवा का पूर्ण लाभ नहीं मिल पायेगा। साथ ही खटाई, तली चीजें, लाल मिर्च आदि का सेवन और मांसाहार एवं शराब पूर्णतः वर्जित र्है।

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