लकवा

Paralysis ( लकवा )
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मस्तिष्क की धमनी में किसी रुकावट के कारण उसके जिस भाग को खून नहीं मिल पाता है मस्तिष्क का वह भाग निष्क्रिय हो जाता है अर्थात मस्तिष्क का वह भाग शरीर के जिन अंगों को अपना आदेश नहीं भेज पाता वे अंग हिलडुल नहीं सकते और मस्तिष्क (दिमाग) का बायां भाग शरीर के दाएं अंगों पर तथा मस्तिष्क का दायां भाग शरीर के बाएं अंगों पर नियंत्रण रखता है। यह स्नायुविक रोग है तथा इसका संबध रीढ़ की हड्डी से भी है।
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लकवा रोग निम्नलिखित प्रकार का होता है-
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1- निम्नांग का लकवा- इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर के नीचे का भाग अर्थात कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर देता है। इस रोग के कारण रोगी के पैर तथा पैरों की उंगुलियां अपना कार्य करना बंद कर देती हैं।
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2- अर्द्धाग का लकवा- इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर का आधा भाग कार्य करना बंद कर देता है अर्थात शरीर का दायां या बायां भाग कार्य करना बंद कर देता है।
एकांग का लकवा- इस प्रकार के लकवा रोग में मनुष्य के शरीर का केवल एक हाथ या एक पैर अपना कार्य करना बंद कर देता है।
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3- पूर्णांग का लकवा- इस लकवा रोग के कारण रोगी के दोनों हाथ या दोनों पैर कार्य करना बंद कर देते हैं।
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4- मेरूमज्जा-प्रदाहजन्य लकवा- इस लकवा रोग के कारण शरीर का मेरूमज्जा भाग कार्य करना बंद कर देता है। यह रोग अधिक सैक्स क्रिया करके वीर्य को नष्ट करने के कारण होता है।
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5- मुखमंडल का लकवा- इस रोग के कारण रोगी के मुंह का एक भाग टेढ़ा हो जाता है जिसके कारण मुंह का एक ओर का कोना नीचे दिखने लगता है और एक तरफ का गाल ढीला हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के मुंह से अपने आप ही थूक गिरता रहता है।
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6- जीभ का लकवा- इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ में लकवा मार जाता है और रोगी के मुंह से शब्दों का उच्चारण सही तरह से नहीं निकलता है। रोगी की जीभ अकड़ जाती है और रोगी व्यक्ति को बोलने में परेशानी होने लगती है तथा रोगी बोलते समय तुतलाने लगता है।
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7- स्वरयंत्र का लकवा- इस रोग के कारण रोगी के गले के अन्दर के स्वर यंत्र में लकवा मार जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति की बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है।
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8- सीसाजन्य लकवा- इस रोग से पीड़ित रोगी के मसूढ़ों के किनारे पर एक नीली लकीर पड़ जाती है। रोगी का दाहिना हाथ या फिर दोनों हाथ नीचे की ओर लटक जाते हैं, रोगी की कलाई की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं तथा कलाई टेढ़ी हो जाती हैं और अन्दर की ओर मुड़ जाती हैं। रोगी की बांह और पीठ की मांसपेशियां भी रोगग्रस्त हो जाती हैं।
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लकवा रोग का लक्षण-
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी के शरीर का एक या अनेकों अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं। इस रोग का प्रभाव अचानक होता है लेकिन लकवा रोग के शरीर में होने की शुरुआत पहले से ही हो जाती है। लकवा रोग से पीड़ित रोगी के बायें अंग में यदि लकवा मार गया हो तो वह बहुत अधिक खतरनाक होता है क्योंकि इसके कारण रोगी के हृदय की गति बंद हो सकती है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। रोगी के जिस अंग में लकवे का प्रभाव है, उस अंग में चूंटी काटने से उसे कुछ महसूस होता है तो उसका यह रोग मामूली से उपचार से ठीक हो सकता है।
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लकवा रोग होने के और भी कुछ लक्षण है जो इस प्रकार है-
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को भूख कम लगती है, नींद नहीं आती है और रोगी की शारीरिक शक्ति कम हो जाती है।

इस रोग से ग्रस्त रोगी के मन में किसी कार्य को करने के प्रति उत्साह नहीं रहता है।
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रोगी के शरीर के जिस अंग में लकवे का प्रभाव होता है, उस अंग के स्नायु अपना कार्य करना बंद कर देते हैं तथा उस अंग में शून्यता आ जाती है।
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लकवा रोग के हो जाने के कारण शरीर का कोई भी भाग झनझनाने लगता है तथा उसमें खुजलाहट होने लगती है।
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शरीर के जिस भाग में लकवे का प्रभाव होता है उस तरफ की नाक के भाग में खुजली होती है।
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साध्य लकवा रोग होने के लक्षण-
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इस रोग के कारण रोगी की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है और रोगी जिस भोजन का सेवन करता है वह सही तरीके से नहीं पचता है।
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इस रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई अन्य रोग हो जाते हैं।
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इस रोग के कारण शरीर के कई अंग दुबले-पतले हो जाते हैं।
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असाध्य लकवा रोग होने के लक्षण इस प्रकार हैं-
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असाध्य लकवा रोग गर्भवती स्त्री, छोटे बच्चे तथा बूढ़े व्यक्ति को होता है और इस रोग के कारण रोगी की शक्ति काफी कम हो जाती है।
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इस प्रकार के लकवे के कारण कई शरीर के अंगों के रंग बदल जाते हैं तथा वह अंग कमजोर हो जाते हैं।
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असाध्य लकवा रोग से प्रभावित अंगों पर सुई चुभाने या नोचने पर रोगी व्यक्ति को कुछ भी महसूस नहीं होता है।
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इस रोग से पीड़ित रोगी की ज्ञानशक्ति तथा काम करने की क्रिया शक्ति कम हो जाती है।
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असाध्य लकवा रोग के कारण रोगी के मुहं, नाक तथा आंख से पानी निकलता रहता है।
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असाध्य लकवा रोग के कारण रोगी को देखने, सुनने तथा किसी चीज से स्पर्श करने की शक्ति नष्ट हो जाती है।
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असाध्य लकवा रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई अन्य रोग हो जाते हैं।
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लकवा रोग होने के निम्नलिखित कारण हैं-
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(1)बहुत अधिक मानसिक कार्य करने के कारण लकवा रोग हो सकता है।
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(2)अचानक किसी तरह का सदमा लग जाना, जिसके कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक कष्ट होता है और उसे लकवा रोग हो जाता है।
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(3)गलत तरीके के भोजन का सेवन करने के कारण लकवा रोग हो जाता है।
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(4)कोई अनुचित सैक्स संबन्धी कार्य करके वीर्य अधिक नष्ट करने के कारण से लकवा रोग हो जाता है।
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(5)मस्तिष्क तथा रीढ़ की हड्डी में बहुत तेज चोट लग जाने के कारण लकवा रोग हो सकता है।
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(6)सिर में किसी बीमारी के कारण तेज दर्द होने से लकवा रोग हो सकता है।
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(7)दिमाग से सम्बंधित अनेक बीमारियों के हो जाने के कारण भी लकवा रोग हो सकता है।
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(8)अत्यधिक नशीली दवाईयों के सेवन करने के कारण लकवा रोग हो जाता है।
अधिक शराब तथा धूम्रपान करने के कारण भी लकवा रोग हो जाता है।
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(9)अधिक पढ़ने-लिखने का कार्य करने तथा मानसिक तनाव अधिक होने के कारण लकवा रोग हो जाता है।
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लकवा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए। इसके बाद रोगी का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से कराना चाहिए।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नींबू पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को ऐसा इलाज कराना चाहिए जिससे कि उसके शरीर से अधिक से अधिक पसीना निकले।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन भापस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद गर्म गीली चादर से अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग को ढकना चाहिए और फिर कुछ देर के बाद धूप से अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी यदि बहुत अधिक कमजोर हो तो रोगी को गर्म चीजों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
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रोगी व्यक्ति का रक्तचाप अधिक बढ़ गया हो तो भी रोगी को गर्म चीजों को सेवन नहीं करना चाहिए।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी की रीढ़ की हड्डी पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए तथा कपड़े को पानी में भिगोकर पेट तथा रीढ़ की हड्डी पर रखना चाहिए।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए उसके पेट पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए तथा उसके बाद रोगी को कटिस्नान कराना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुछ ही दिनों में लकवा रोग ठीक हो जाता है।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी को सूर्यतप्त पीले रंग की बोतल का ठंडा पानी दिन में कम से कम आधा कप 4-5 बार पीना चाहिए तथा लकवे से प्रभावित अंग पर कुछ देर के लिए लाल रंग का प्रकाश डालना चाहिए और उस पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी का लकवा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को लगभग 10 दिनों तक फलों का रस नींबू का रस, नारियल पानी, सब्जियों के रस या आंवले के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए अंगूर, नाशपाती तथा सेब के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को कुछ सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी का रोग जब तक ठीक न हो जाए तब तक उसे अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए तथा ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। रोगी को ठंडे स्थान पर रहना चाहिए।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को अपने शरीर पर सूखा घर्षण करना चाहिए और स्नान करने के बाद रोगी को अपने शरीर पर सूखी मालिश करनी चाहिए। मालिश धीरे-धीरे करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को अपना उपचार कराते समय अपना मानसिक तनाव दूर कर देना चाहिए तथा शारीरिक रूप से आराम करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को योगनिद्रा का उपयोग करना चाहिए।
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लकवा रोग से पीड़ित रोगी को पूर्ण रूप से व्यायाम करना चाहिए जिसके फलस्वरूप कई बार दबी हुई नस तथा नाड़ियां व्यायाम करने से उभर आती हैं और वे अंग जो लकवे से प्रभावित होते हैं वे ठीक हो जाते हैं।

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