कैंसर
तुलसी एक दिव्य पौधा है।
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तुलसी की २१ से ३५ पत्तियाँ स्वच्छ खरल या सिलबट्टे (जिस पर मसाला न पीसा गया हो) पर चटनी की भांति पीस लें और १० से ३० ग्राम मीठी दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन मास तक खायें। ध्यान रहे दही खट्टा न हो और यदि दही माफिक न आये तो एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लें। छोटे बच्चों को आधा ग्राम दवा शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भुलकर भी न दें। औषधि प्रातः खाली पेट लें। आधा एक घंटे पश्चात नाश्ता ले सकते हैं। दवा दिनभर में एक बार ही लें परन्तु कैंसर जैसे असह्य दर्द और कष्टप्रद रोगो में २-३ बार भी ले सकते हैं।
इसके तीन महीने तक सेवन करने से खांसी, सर्दी, ताजा जुकाम या जुकाम की प्रवृत्ति, जन्मजात जुकाम, श्वास रोग, स्मरण शक्ति का अभाव, पुराना से पुराना सिरदर्द, नेत्र-पीड़ा, उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, ह्रदय रोग, शरीर का मोटापा, अम्लता, पेचिश, मन्दाग्नि, कब्ज, गैस, गुर्दे का ठीक से काम न करना, गुर्दे की पथरी तथा अन्य बीमारियां, गठिया का दर्द, वृद्धावस्था की कमजोरी, विटामिन ए और सी की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग, सफेद दाग, कुष्ठ तथा चर्म रोग, शरीर की झुर्रियां, पुरानी बिवाइयां, महिलाओं की बहुत सारी बीमारियां, बुखार, खसरा आदि रोग दूर होते हैं।
यह प्रयोग कैंसर में भी बहुत लाभप्रद है।
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मित्रो कैंसर हमारे देश मे बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है । हर साल बीस लाख लोग कैंसर से मर रहे है और हर साल नए Cases आ रहे है । और सभी डॉक्टर्स हाथ-पैर डाल चुके है ।
राजीव भाई की एक छोटी सी विनती है याद रखना के … ” कैंसर के patient को कैंसर से death नही होती है, जो treatment उसे दिया जाता है उससे death सबसे अधिक होती है ” । माने कैंसर से ज्यादा खतरनाक कैंसर का treatment है । Treatment कैसा है ? ?आप सभी जानते है .. Chemotherapy दे दिया, Radiotherapy दे दिया, Cobalt-therapy दे दिया ।
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इसमें क्या होता है के शरीर का जो प्रतिरक्षक शक्ति है Resistance power ! वो बिलकुल ख़तम हो जाती है । जब Chemotherapy दिए जाते है तो डाक्टर ये बोलते है की हम कैंसर के सेल को मारना चाहते है लेकिन होता क्या है अच्छे सेल भी उसी के साथ मर जाते है । राजीव भाई के पास कोई भी रोगी जो आया Chemotherapy लेने के बाद राजीव भाई उसे बचा नही पाए । लेकिन इसका उल्टा भी रिकॉर्ड है .. राजीव भाई के पास बिना Chemotherapy लिए हुए कोई भी रोगी आया Second & third Stage के cancer तक वो एक भी नही मर पाया !
मतलब क्या है Treatment लेने मे जो खर्च आपने कर दिया वो तो गया ही और रोगी भी आपके हाथ से गया । डॉक्टर आपको भूल-भुलैया में रखता है अभी 6 महीने में ठीक हो जायेगा 8 महीने में ठीक हो जायेगा लेकिन अंत में वो मर ही जाता है , कभी हुआ नही है के Chemotherapy लेने के बाद कोई बच पाया हो । आपके घर परिवार में अगर किसी को कैंसर हो जाये तो ज्यादा खर्चा मत करिए कियों की जो खर्च आप करेंगे उससे मरीज का तो भला नही होगा उसको इतना कष्ट होता है की आप कल्पना नही कर सकते ।
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उसको जो injections दिए जाते है, जो Tablets खिलाई जाती है, उसको जो Chemotherapy दी जाती है उससे सारे बाल उड़ जाते है, भ्रू के बाल उड़ जाते है, चेहरा इतना डरावना लगता है के पहचान में नही आता ये अपना ही आदमी है? इतना कष्ट क्यों दे रहे हो उसको ? सिर्फ इसलिए के आपको एक अहंकार है के आपके पास बहुत पैसा है तो Treatment कराके ही मानुगा ! होता ही नही है वो,
और आप अपनी आस पड़ोस की बाते ज्यादा मत सुनिए क्योंकि आजकल हमारे Relatives बहुत Emotionally Exploit करते है । घर में किसी को गंभीर बीमारी हो गयी तो जो रिश्तेदार है वो पहले आ के कहते है ‘ अरे All India नही ले जा रहे हो? PGI नही ले जा रहे हो ? Tata Institute बम्बई नही ले जा रहे हो ? आप कहोगे नही ले जा रहा हूँ मेरे घर में ही चिकित्सा …. अरे तुम बड़े कंजूस आदमी हो बाप के लिए इतना भी नही कर सकते माँ के लिए इतना नही कर सकते ” । ये बहुत खतरनाक लोग होते है !!
हो सकता है कई बार वो Innocently कहते हो, उनका intention ख़राब नही होता हो लेकिन उनको Knowledge कुछ भी नही है, बिना Knowledge के वो suggestions पे suggestions देते जाते है और कई बार अच्छा खासा पढ़ा लिखा आदमी फंसता है उसी में .. रोगी को भी गवाता है पैसा भी जाता है ।
कैंसर के लिए क्या करे ? हमारे घर में कैंसर के लिए एक बहुत अच्छी दवा है ..अब डॉक्टर ने मान लिया है पहले तो वे मानते भी नही थे; एक ही दुनिया में दवा है Anti-Cancerous उसका नाम है ” हल्दी ” । हल्दी कैंसर ठीक करने की ताकत रखती है ! कैसे ताकत रखती है वो जान लीजिये हल्दी में एक केमिकल है उसका नाम है कर्कुमिन (Carcumin) और ये ही कैंसर cells को मार सकता है बाकि कोई केमिकल बना नही दुनिया में और ये भी आदमी ने नही भगवान ने बनाया है ।
हल्दी जैसा ही कर्कुमिन और एक चीज में है वो है देशी गाय के मूत्र में । गोमूत्र माने देशी गाय के शारीर से निकला हुआ सीधा-सीधा मूत्र जिसे सूती के आट परत की कपड़ो से छान कर लिया गया हो । तो देशी गाय का मूत्र अगर आपको मिल जाये और हल्दी आपके पास हो तो आप कैंसर का इलाज आसानी से कर पायेंगे ।
(देशी गाय की पहचान उसकी पीठ पर हंप होता है )
अब देशी गाय का मूत्र आधा कप और आधा चम्मच हल्दी दोनों मिलाके गरम करना जिससे उबाल आ जाये फिर उसको ठंडा कर लेना । Room Temperature में आने के बाद रोगी को चाय की तरह पिलाना है .. चुस्किया ले ले के सिप सिप कर कर । एक और आयुर्वेदिक दावा है पुनर्नवा जिसको अगर आधा चम्मच इसमें मिलायेंगे तो और अच्छा result आयेगा । ये Complementary है जो आयुर्वेद के दुकान में पाउडर या छोटे छोटे पीसेस में मिलती है ।
याद रखें इस दावा में सिर्फ देशी गाय का मूत्र ही काम में आता है विदेशी जर्सी का मूत्र कुछ काम नही आता । और जो देशी गाय काले रंग की हो उसका मूत्र सबसे अच्छा परिणाम देता है इन सब में । इस दवा को (देशी गाय की मूत्र, हल्दी, पुनर्नवा ) सही अनुपात में मिलाके उबालकर ठंडा करके कांच की पात्र में स्टोर करके रखिये पर बोतल को कभी फ्रिज में मत रखिये, धुप में मत रखिये । ये दावा कैंसर के सेकंड स्टेज में और कभी कभी थर्ड स्टेज में भी बहुत अच्छे परिणाम देती है
।
जब स्टेज थर्ड क्रस करके फोर्थ में पहुँच गया हो तब रिजल्ट में प्रॉब्लम आती है । और अगर अपने किसी रोगी को Chemotherapy बैगेरा दे दिया तो फिर इसका कोई असर नही आता ! कितना भी पिलादो कोई रिजल्ट नही आता, रोगी मरता ही है । आप अगर किसी रोगी को ये दावा दे रहे है तो उसे पूछ लीजिये जान लीजिये कहीं Chemotherapy शुरू तो नही हो गयी ? अगर शुरू हो गयी है तो आप उसमे हाथ मत डालिए, जैसा डॉक्टर करता है करने दीजिये, आप भगवान से प्रार्थना कीजिये उसके लिए .. इतना ही करे ।
और अगर Chemotherapy स्टार्ट नही हुई है और उसने कोई एलोपैथी treatment शुरू नही किया तो आप देखेंगे इसके Miraculous (चमत्कारिक रिजल्ट आते है । ये सारी दवाई काम करती है बॉडी के resistance पर, हमारी जो vitality है उसको improve करता है, हल्दी को छोड़ कर गोमूत्र और पुनर्नवा शरीर के vitality को improve करती है और vitality improve होने के बाद कैंसर cells को control करते है ।
तो कैंसर के लिए आप अपने जीवन में इस तरह से काम कर सकते है; इसके इलावा भी बहुत सारी मेडिसिन्स है जो थोड़ी complicated है वो कोई बहुत अच्छा डॉक्टर या वैद्य उसको हैडल करे तभी होगा आपसे अपने घर में नही होगा । इसमें एक सावधानी रखनी है के गाय के मूत्र लेते समय वो गर्भवती नही होनी चाहिए। गाय की जो बछड़ी है जो माँ नही बनी है उसका मूत्र आप कभी भी use कर सकते है।
ये तो बात हुई कैंसर के चिकित्सा की, पर जिन्दगी में कैंसर हो ही न ये और भी अच्छा है जानना । तो जिन्दगी में आपको कभी कैंसर न हो उसके लिए एक चीज याद रखिये के, हमेशा जो खाना खाए उसमे डालडा घी (refine oil ) तो नही है ? उसमे refined oil तो नही है ? हमेशा शुद्ध तेल खाये अर्थात सरसों ,नारियल ,मूँगफली का तेल खाने मे प्रयोग करें ! और घी अगर खाना है तो देशी गाय का घी खाएं ! गाय का देश घी नहीं !
ये देख लीजिये, दूसरा जो भी खाना खा रहे है उसमे रेशेदार हिस्सा ज्यादा होना चाहिए जैसे छिल्केवाली दाले, छिल्केवाली सब्जिया खा रहे है , चावल भी छिल्केवाली खा रहे है तो बिलकुल निश्चिन्त रहिये कैंसर होने का कोई चान्स नही है ।
और कैंसर के सबसे बड़े कारणों में से दो तीन कारण है, एक तो कारण है तम्बाकू, दूसरा है बीड़ी और सिगरेट और गुटका ये चार चीजो को तो कभी भी हाथ मत लगाइए क्योंकि कैंसर के maximum cases इन्ही के कारन है पुरे देश में ।
कैंसर के बारे में सारी दुनिया एक ही बात कहती है चाहे वो डॉक्टर हो, experts हो, Scientist हो के इससे बचाओ ही इसका उपाय है ।
महिलाओं को आजकल बहुत कैंसर है uterus में गर्भाशय में, स्तनों में और ये काफी तेजी से बड़ रहा है .. Tumour होता है फिर कैंसर में convert हो जाता है । तो माताओं को बहनों को क्या करना चाहिए जिससे जिन्दगी में कभी Tumour न आये ? आपके लिए सबसे अच्छा prevention है की जैसे ही आपको आपके शरीर के किसी भी हिस्से में unwanted growth (रसोली, गांठ) का पता चले तो जल्द ही आप सावधान हो जाइये । हलाकि सभी गांठ और सभी रसोली कैंसर नही होती है 2-3% ही कैंसर में convert होती है
लेकिन आपको सावधान होना तो पड़ेगा । माताओं को अगर कहीं भी गांठ या रसोली हो गयी जो non-cancerous है तो जल्दी से जल्दी इसे गलाना और घोल देने का दुनिया में सबसे अछि दावा है ” चुना ” । चुन वो ही जो पान में खाया जाता है, जो पोताई में इस्तेमाल होता है ; पानवाले की दुकान से चुना ले आइये उस चुने को कनक के दाने के बराबर रोज खाइये; इसको खाने का तरीका है पानी में घोल के पानी पी लीजिये, दही में घोल के दही पी लीजिये, लस्सी में घोल के लस्सी पी लीजिये, डाल में मिलाके दाल खा लीजिये, सब्जी में डाल के सब्जी खा लीजिये । पर ध्यान रहे पथरी के रोगी के लिए चुना बर्जित है ।
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अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व
आयु बढ़ाती है।
अलसी में
23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 
20 प्रतिशत प्रोटीन, 
27 प्रतिशत फाइबर, 
लिगनेन, 
विटामिन बी ग्रुप, 
सेलेनियम, 
पोटेशियम, 
मेगनीशियम, 
जिंक 
आदि होते हैं।
सम्पूर्ण विश्व ने
अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और
इसे आहार का अंग बना लिया है,
लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है,
पुराने लोग अलसी का नाम भूल चुके है और
युवाओं ने अलसी का नाम सुना ही नहीं है।
अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है।
प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और
इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था।
जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते थे और
जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी।
ओमेगा-थ्री हमे रोगों से करता है फ्री।
शुद्ध, शाकाहारी, सात्विक, निरापद और आवश्यक ओमेगा-थ्री का खजाना है अलसी।
ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी
कोशिकाओं, 
उनके न्युक्लियस, 
माइटोकोन्ड्रिया आदि 
संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
यही इन झिल्लियों को वांछित
तरलता, 
कोमलता और 
पारगम्यता 
प्रदान करती है। 
हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो
ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर
कठोर व 
कुरुप ओमेगा-6 फैट या 
ट्रांस फैट से बनती है, 
और इससे ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है,
प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं,
हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम होने लगती हैं,
सुलगने लगती हैं और
यहीं से
ब्लडप्रेशर, 
डायबिटीज, 
मोटापा, 
डिप्रेशन, 
आर्थ्राइटिस और 
कैंसर आदि 
रोगों की शुरूवात हो जाती है।  
 
कब्जासुर का वध करती है अलसी। 
आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और 
पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। 
आई.बी.एस., 
अल्सरेटिव कोलाइटिस, 
अपच, 
बवासीर, 
मस्से आदि का भी 
उपचार करती है अलसी।
 
डायन डायबिटीज का सीना छलनी-छलनी करने में सक्षम है 
अलसी-47 बन्दूक।
अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती,
बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है।
अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है।
इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और
मधुमेह के लिए आदर्श आहार है।
अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है,
खाने की ललक कम करती है, 
चर्बी कम करती है, 
शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, 
आलस्य दूर करती है और 
वजन कम करने में 
सहायता करती है। 
चूँकि ओमेगा-3 और 
प्रोटीन 
मांस-पेशियों का विकास करते हैं 
अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी
नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।
 
हृदयरोग जरासंध है तो 
अलसी भीमसेन है।
अलसी कॉलेस्ट्रॉल, 
ब्लड प्रेशर और 
हृदयगति को सही रखती है। 
रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी।
रक्तवाहिकाओं को स्वीपर की तरह साफ करती रहती है अलसी।
यानी हार्ट अटेक के कारण पर अटैक करती है अलसी।
सुपरस्टार अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि
अलसी से मन प्रसन्न रहता है,
झुंझलाहट या 
क्रोध नहीं आता है, 
पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है और
पति पत्नि झगड़ना छोड़कर गार्डन में ड्यूएट गाते नज़र आते हैं।
यह आपके 
तन, 
मन और 
आत्मा को 
शांत और सौम्य कर देती है।
अलसी के सेवन से मनुष्य
लालच, 
ईर्ष्या, 
द्वेश और 
अहंकार छोड़ देता है। 
इच्छाशक्ति, 
धैर्य, 
विवेकशीलता बढ़ने लगती है, 
पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। 
इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी।
यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है। 
 
माइन्ड के सरकिट का SIM CARD है अलसी। 
यहाँ सिम का मतलब 
शांति, 
इमेजिनेशन या 
कल्पनाशीलता और 
मेमोरी या 
स्मरणशक्ति तथा 
कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन या 
एकाग्रता, 
क्रियेटिविटी या 
सृजनशीलता, 
अलर्टनेट या 
सतर्कता, 
रीडिंग या 
राईटिंग 
थिंकिंग एबिलिटी या 
शैक्षणिक क्षमता और 
डिवाइन या 
दिव्य है। 
अलसी खाने वाले विद्यार्थी परीक्षाओं में अच्छे नंबर प्राप्त करते हैं और
उनकी सफलता के सारे द्वार खुल जाते हैं।
आपराधिक प्रवृत्ति से ध्यान हटाकर अच्छे कार्यों में लगाती है अलसी।
इसलिये
आतंकवाद और 
नक्सलवाद का भी 
समाधान है अलसी।
 त्वचा, 
केश और 
नाखुनों का 
नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी।
मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान मुक्त कणों या फ्री रेडिकलस् से होता है।
हवा में मौजूद ऑक्सीडेंट्स के कण
त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से
इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं।
परिणाम स्वरूप
त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो
धीरे-धीरे झुर्रियों व 
झाइयों का रूप ले लेती है, 
त्वचा में रूखापन आ जाता है और 
त्वचा वृद्ध सी लगने लगती है। 
अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व 
लिगनेन त्वचा के 
कोलेजन की रक्षा करते हैं और 
त्वचा को आकर्षक, 
कोमल, 
नम, 
बेदाग व 
गोरा बनाते हैं 
अलसी नाखुओं की रिमॉडलिंग करती है और
स्वस्थ व प्राकृतिक आकार प्रदान करती है।
अलसी खाने वालों को पसीने में दुर्गन्ध कम आती है।
अलसी 
सुरक्षित, 
स्थाई और 
उत्कृष्ट भोज्य 
सौंदर्य प्रसाधन है जो 
त्वचा में अंदर से निखार लाता है। 
त्वचा, 
केश और 
नाखून के हर रोग जैसे 
मुहांसे, 
एग्ज़ीमा, 
दाद, 
खाज, 
खुजली, 
सूखी त्वचा, 
सोरायसिस, 
ल्यूपस, 
डेन्ड्रफ, 
बालों का सूखा, 
पतला या दोमुंहा होना, 
बाल झड़ना आदि का 
उपचार है अलसी। 
चिर यौवन का स्रोता है अलसी। 
बालों का काला हो जाना या
नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी।
अलसी खाकर 
70 वर्ष के बूढे भी 
25 वर्ष के युवाओं जैसा 
अनुभव करने लगते हैं। 
किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है। 
 
पृथ्वी पर लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो 
जीवाणुरोधी, 
विषाणुरोधी, 
फफूंदरोधी, 
ल्यूपसरोधी और 
कैंसररोधी है। 
अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और
शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है।
लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला
एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है
जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और
नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे
रजस्वला, 
गर्भावस्था, 
प्रसव, 
मातृत्व और 
रजोनिवृत्ति में 
विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। 
लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। 
लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और
अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है।
लिगनेन दुग्धवर्धक है।
लिगनेन 
स्तन, 
बच्चेदानी, 
आंत, 
प्रोस्टेट, 
त्वचा व 
अन्य सभी कैंसर, 
एड्स, 
स्वाइन फ्लू तथा 
एंलार्ज प्रोस्टेट आदि 
बीमारियों से बचाव व उपचार करता है। 
 
जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। 
जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया जुगाड़ है अलसी। ¬¬
आर्थ्राइटिस, 
शियेटिका, 
ल्युपस, 
गाउट, 
ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी। 
 
कई असाध्य रोग जैसे 
अस्थमा, 
एल्ज़ीमर्स, 
मल्टीपल स्कीरोसिस, 
डिप्रेशन, 
पार्किनसन्स, 
ल्यूपस नेफ्राइटिस, 
एड्स, 
स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। 
कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी।
दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी। 
 
पुरूष को कामदेव तो 
स्त्रियों को रति बनाती है अलसी। 
अलसी बांझपन, 
पुरूषहीनता, 
शीघ्रस्खलन व 
स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है। अलसी 
शरीर में उत्कृष्ट कोटि के फेरामोन्स (आकर्षण के हारमोन्स) बनाती हैं,
जिससे पति-पत्नि के बीच आकर्षण और प्रेम का बन्धन मजबूत होता है।
इसका सेवन स्त्री-पुरुष दोनों की काम-शक्ति बढ़ाता है और
समस्त लैंगिक समस्याओं का एक-सूत्रीय समाधान है।
 
जहाँ एक ओर बहुराष्ट्रीय संस्थान हमें जानलेवा और कोशिकीय श्वसन को बाधित करने वाले 
रिफाइन्ड तेल, 
हाइड्रोजिनेटेड वसा और 
ट्राँस-फैट खिला रहे हैं, 
अमानुष बना रहे हैं और 
हम प्रकाशहीनता तथा 
विभिन्न रोगों का शिकार हो रहे हैं। 
अमानुष में श्वसन एवम् अन्य जीवन क्रियायें अवरुद्ध रहती हैं,
ऊर्जा और सक्रियता का अभाव होता है क्योंकि 
उसमें सूर्य के फोटोन्स की लय में लय मिला कर आकर्षित करने वाले इलेक्ट्रोन्स बहुत ही कम होते हैं, 
जिससे वह रोगग्रस्त होता है,
भूतकाल और मृत्यु की ओर गमन करता है।
दूसरी ओर आवश्यक वसा अम्ल (ओम-3 और ओम-6) से भरपूर अलसी के सेवन से
मनुष्य की सूर्य के प्रकाश या इलेक्ट्रोन्स को अवशोषण करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है,
शरीर में अनंत और असीम ऊर्जा प्रवाहित होती है,
वह जीवन रेखा पर भविष्य की ओर अग्रसर होता है,
आदर्श मानुष बनता है, 
निरोगी बनता है और 
अमरत्व को प्राप्त करता है।
1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है।
यह क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता थी।
इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी।
नेता और नोबेल पुरस्कार समिति के सभी सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा।
इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा।
उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबेल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।
बुडविग आहार पद्धति की विश्वसनीयता और ख्याति का आलम यह है कि गूगल पर मात्र बुडविग अंकित करने पर एक लाख पचपन हजार पृष्ठ खुलते हैं
जो चीख चीख कर कहते हैं, बुडविग उपचार सम्बंधी सारी बारीकियां बतलाते हैं और बुडविग पद्धति से ठीक हुए रोगियों की पूरी जानकारियाँ देते हैं।
पर डॉ. बुडविग की ये पुकार सरकारों, उच्चाधिकारियों और एलोपेथी के कैंसर विशेषज्ञों तक नहीं पहुँच पायेंगी क्योंकि
उनके कान, आँखें और मुँह सभी के रिमोट कंट्रोल राउडी रेडियोथैरेपी तथा किलर कीमोथैरेपी बनाने वाली मल्टीनेशनल कम्पनियों ने अपने लोकर्स में रख दिये हैं।
स्टुटगर्ट रेडियो पर प्रसारित एक साक्षातकार में बुडविग ने कहा था कि
गोटिंजन में एक रात को एक महिला अपने बच्चे को लेकर रोती हुई मेरे पास आई और बताया कि उसके बच्चे के पैर में सारकोमा नामक कैंसर हो गया है और डॉक्टर उसका पैर काटना चाहते हैं।
मैंने उसे सांत्वना दी, उसको सही उपचार बताया और उसका बच्चा जल्दी ठीक हो गया और पैर भी नहीं काटना पड़ा।
अलसी सेवन का तरीकाः-
हमें प्रतिदिन 30 से 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये।
30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये।
डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें।
कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये।
इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।
अलसी के लड्डू
सामग्री- 
 ताजा पिसी अलसी 100 ग्राम 
आटा 100 ग्राम 
मखाने 75 ग्राम 
नारियल कसा हुआ 75 ग्राम 
किशमिश 25 ग्राम 
कटी हुई बादाम 25 ग्राम 
घी 300 ग्राम 
चीनी का बूरा 350 ग्राम
लड्डू बनाने कि विधिः-
कढ़ाही में लगभग 50 ग्राम घी गर्म करके उसमें मखाने हल्के हल्के तल लें । 
लगभग 150 ग्राम घी गर्म करके उसमें आटे को हल्की ऑच पर गुलाबी होने तक भून लें। 
जब आटा ठंडा हो जाये तब सारी सामग्री और बचा हुआ घी अच्छी तरह मिलायें और गोल गोल लड्डू बना लें।
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धन्यवाद और आभार ईश्वर का🙏🙏