हर समय उपयोगी


हर समय उपयोगी जड़ी-बूटियां

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लोग कहते हैं कि हर व्यक्ति छोटा-मोटा चिकित्सक होता है। यानी छोटी-मोटी बीमारियों के प्रति डाक्टर के पास जाने की बजाय घर में उपलब्ध जड़ी-बूटियों से ही अपना इलाज कर स्वस्थ हो जाता है।
वैसे हमारे घरों में ही इतनी प्राकृतिक दवाएं होती है जिससे सामान्य बीमारियों में हम ज्यादा परेशान हुए बगैर स्वस्थ हो सकते हैं। अगर इन जड़ी बूटियों का चूर्ण शीशियों में भरकर रख लें तो वक्त आने पर तुरन्त इलाज कर सकत हैं। ढूंढने में अपना समय बर्बाद नहीं करना पड़ेगा। प्रस्तुत है कुछ सामान्य जड़ी-बूटियां और उनके गुणधर्म।

अजवाइन-स्वाद में चरपरी और हल्की-कड़वी होती है। यह पाचन क्रिया ठीक करने वाली, न्निदोष नाशक, शीत विकृति में फायदेमंद है। घाव इत्यादि में इसके जल का धोने में उपयोग किया जाता है।

अनार- तीनों दोष (वात पित्त कफ) को ठीक करने वाला, स्वादिष्ट, हृदय रोगों में लाभकारी है। उल्टी होने पर अनार दाने का चूर्ण व शक्कर खिलाया जाता है। इसके अलावा प्रतिदिन इसके चूर्ण सेवन करने से वीर्य में वृध्दि होती है।

आम- आम का अमचूर वीर्य वर्ध्दक, शीतकारी, पित्त को शान्त करने वाला कब्जियत के लिए उपयोगी है।

आंवला- आंवला का चूर्ण प्रतिदिन रात्रि में कुनकने जल के साथ सेवन करने पर मोटापा, विटामिन सी, की कमी से उत्पन्न रोग, पेट संबंधी विकार शान्त हो जाते हैं। वीर्य वर्ध्दक व पुष्टि के लिए यह सदैव उपयोगी रहा है। रक्त दोष की यह सर्वोत्तम औषधि है। दस्त लगने की स्थिति में उत्पन्न प्यास में या जल की कमी में इसे शहद से सेवन किया जाये या इसका चूर्ण जल में कुछ घंटे भिगोकर रखें और फिर छान कर सेवन करें तो लाभ होगा।

इलायची- अच्छी पाचक, कास रोधक, शीत प्रकृति और कफ नाशक होती है। इसका चूर्ण शहद के साथ सेवन करना चाहिए। मुख की दुर्गन्ध दूर करने के लिए सुबह-शाम इलायची चबाना चाहिए।

ईसब गोल की भूसी- यह बाजार में आसानी से उपलब्ध ह। पेचिश लगने के दौरान इसे दूध में भिगोकर शक्कर के साथ सेवन करना चाहिए।

कत्था- लोग आमतौर पर पान में लगाकर खाते हैं। इसे खैर की लकड़ी से प्राप्त किया जाता है। पतले दस्त लगने पर दिन में चार-पांच बार दो-दो चुटकी कत्था खाकर पानी पीना चाहिए।

करेला- करेले का चूर्ण बाजारों में उपलब्ध होता है या फिर सुखाकर (पूर्णफल) पीसकर रख लें। यह कृमिनाश की अच्छा दवा है।

कालीमिर्च- काली मिर्च का मंजन करने पर दांत दर्द ठीक होता है।

केशर- हालांकि शुध्द केशर काफी महंगी मिलती है। इसका सेवन दूध में उबाल कर करने पर चेहरे का रंग निखरता है। यह प्रयोग विवाहित लोगों को करना चाहिए।

चंदन- चंदन चूर्ण का शर्बत पेशाब में जलन व धूप-गर्मी से उत्पन्न सिरदर्द में लाभकारी है। चेहरे पर लगाने से चेहरा निखरता है। यह शीतल प्रकृति का होता है। अतः शीतकाल में इसका उपयोग न करें।

जिमीकंद- जिमीकंद को सुखाकर चूर्ण बना लें या इसके कच्चे कंद को आग में भूनकर नमक के साथ खाएं। बवासीर का यह सर्वोत्तम औषधि है।

तुलसी- इसका सर्वाग उपयोगी है। प्रतिदिन तुलसी की पांच पत्ती सेवन करने पर बहुत से रोग स्वमेव खत्म हो जाते हैं। यह अच्छा एण्टी बायोटिक है।

नीम- नीम के बीज से निकाला गया तेल चर्म रोग नाशक, जुएं नाशक है। इसकी सूखी पत्तियों को गेहूं या कागज के बीच रख देने से कीड़े नहीं लगते हैं।

बादाम- प्रतिदिन बच्चों को पांच बादाम छीलकर दूध के साथ देने पर स्मरण शक्ति में आशानुकूल वृध्दि होती है।

मैथी- महिलाओं में होने वाले, वात के कारण कमर व जोड़ों के दर्द में, इसके लड्डू देना चाहिए। महिलाओं के रोग सफेद प्रदर में मैथी को जल में 8-10 घंटे भिगोकर इसके जल से योनि प्रदेश को धोने पर यह रोग चला जाता है।

लौंग- चिरपिरे स्वाद वाली यह मुखीय विकारों में फायदेमंद है।
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��स्वस्थ्य वृत्त ✍

अगर आप हमेशा स्वस्थ रहना चाहते हैं तो आपको
अपनी दिनचर्या में थोड़ा सा बदलाव करना होगा।
भारतीय संस्कृति के अनुरूप अपने पूर्वजो के
दिए हुए ज्ञान को जीवन में आत्मसात करे और आरोग्य की प्राप्ति करे।

��आंवला
किसी भी रूप में थोड़ा सा आंवला हर रोज़ खाते रहे, जीवन भर उच्च रक्तचाप
और हार्ट फेल नहीं होगा।
��दातुन
दातुन हमारे पूर्वजो की वो विरासत हैं जिसको अगर हम संभाल ले तो आरोग्य का खज़ाना प्राप्त कर सकते हैं। दातुन सिर्फ दाँतो के लिए ही लाभदायक नहीं हैं वरन ये हमारे सम्पूर्ण
शरीर के जटिल रोगो से लड़ने में भी बहुत सहाई हैं। मगर आज पाश्चात्य
जगत के पिछलगू बन कर हमने अपनी इस महान धरोहर को भुला दिया, इसी के परिणामस्वरूप हम आज ऐसी अस्वस्थ
परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।
��मेथी
मेथीदाना पीसकर रख ले। एक चम्मच एक गिलास पानी में उबाल कर नित्य
पिए। मीठा, नमक कुछ भी
नहीं डाले इस पानी में। इस से आंव नहीं बनेगी, शुगर कंट्रोल रहेगी जोड़ो के दर्द नहीं होंगे और पेट ठीक रहेगा।
��नेत्र स्नान
मुंह में पानी का कुल्ला भर कर नेत्र धोये। ऐसा दिन में तीन बार करे। जब भी पानी के पास जाए मुंह में पानी का कुल्ला भर ले और नेत्रों पर पानी के
छींटे मारे, धोये। मुंह का पानी एक मिनट बाद निकाल कर पुन: कुल्ला भर ले। मुंह का पानी गर्म ना हो इसलिए बार बार कुल्ला नया भरते रहे। भोजन करने के बाद गीले हाथ तौलिये से नहीं पोंछे। आपस में दोनों हाथो को
रगड़ कर चेहरा व कानो तक मले। इससे आरोग्य शक्ति बढ़ती हैं। नेत्र ज्योति ठीक रहती हैं।
��शौच
ऐसी आदत डाले के नित्य शौच जाते समय दाँतो
को आपस में भींच कर रखे। इस से दांत मज़बूत रहेंगे, तथा लकवा नहीं होगा।अधिक चटपटे, ठन्डे और गर्म पदार्थ सेवन नहीं करे। अति ठन्डे और गर्म सेवन से दांत, गला खराब हो जाता हैं। सरसों का तेल और नमक मिलाकर
दांत मलने से दांत अच्छे रहते हैं।
��छाछ
तेज और ओज बढ़ने के लिए छाछ का निरंतर सेवन बहुत हितकर हैं। सुबह और दोपहर के भोजन में नित्य छाछ का
सेवन करे। भोजन में पानी के स्थान पर छाछ का उपयोग बहुत हितकर हैं।
��कानो में तेल सर्दियों में हल्का गर्म और गर्मियों में ठंडा सरसों का तेल तीन बूँद दोनों कान में कभी
कभी डालते रहे। इस से कान स्वस्थ रहेंगे।
��निद्रा
दिन में जब भी विश्राम करे तो दाहिनी करवट ले कर सोएं। और रात में बायीं करवट ले कर सोये। दाहिनी करवट लेने से बायां स्वर अर्थात चन्द्र नाड़ी चलेगी और बायीं करवट लेने से दाहिना स्वर अर्थात सूर्य स्वर चलेगा। इसके लिए स्वर विज्ञान की बहुत पुरानी कहावत हैं।
��ताम्बे का पानी
रात को ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ पानी सुबह उठते बिना कुल्ला किये ही पिए, निरंतर ऐसा करने से आप कई रोगो से बचे रहेंगे। ताम्बे के बर्तन में रखा जल गंगा जल के समान शक्तिशाली माना गया हैं।
��सौंठ
सामान्य बुखार, फ्लू, जुकाम और कफ से बचने के लिए पीसी हुयी आधा
चम्मच सौंठ और ज़रा सा गुड एक गिलास पानी में इतना उबाले के आधा पानी रह जाए। रात को
सोने से पहले यह पिए। बदलते मौसम, सर्दी व वर्षा के आरम्भ में यह पीना रोगो से बचाता हैं। सौंठ नहीं हो तो अदरक का इस्तेमाल कीजिये।
��टाइफाइड
चुटकी भर दालचीनी
की फंकी चाहे अकेले
ही चाहे शहद के साथ दिन में दो बार लेने से टाइफाईड नहीं होता।
��ध्यान
हमारा शरीर हमारे मन के विचारो का आइना हैं, जैसा हमारा मन होगा वैसा ही हमारा ये तन होगा, इसलिए ज़रूरी हैं के हम अपने मन के स्वस्थ्य पर पूर्ण ध्यान दे। ध्यान स्वस्थ्य को पाने की अनूठी विधि हैं, हमारे पूर्वजो ने इसको बहुत पहले ही समझ लिया था, जिस
कारण से उन्होंने अनेक विधियों का निर्माण किया, जिस से हम ध्यान मार्ग से अपने स्वस्थ को पा सके। आज पाश्चात्य जगत में इसकी बहुत महिमा हैं,
जिस कारण ये विदेशो से होता हुआ हमारे पास वापिस आ रहा हैं। हर रोज़ कम से कम 15 से 20 मिनट मैडिटेशन ज़रूर
करे।
��नाक
रात को सोते समय नित्य सरसों का तेल नाक में लगाये।
हर तीसरे दिन दो कली लहसुन रात को भोजन के साथ ले।
प्रात: दस तुलसी के पत्ते
और पांच काली मिर्च नित्य चबाये।सर्दी, बुखार, श्वांस रोग नहींहोगा। नाक स्वस्थ रहेगी।
��मालिश
मालिश की आयुर्वेद में बहुत महिमा हैं। इस से शरीर का रक्त गतिमान रहता हैं, बुढ़ापा और रोग दोनों ही नज़दीक नहीं फटकते। स्नान करने से आधा घंटा पहले सर के ऊपरी हिस्से की सरसों के
तेल से मालिश करे। इस से सर हल्का रहेगा, मस्तिष्क ताज़ा रहेगा। रात को सोने से पहले पैर के तलवो, नाभि, कान के पीछे और गर्दन पर सरसों के तेल की मालिश कर के सोएं। निद्रा अच्छी आएगी, मानसिक तनाव दूर होगा। त्वचा मुलायम रहेगी। सप्ताह में एक दिन पूरे  शरीर में मालिश ज़रूर करे।
��योग और प्राणायाम
हमारे ऋषियों मुनियो की अनुपम खोज हैं योगा
और प्राणायाम । अगर आप चाहते हैं के आप 100 वर्ष तक निरोगी जवान और खूबसूरत बने रहे तो
आप नित्य कम से कम आधा घंटा योग और प्राणायाम का अभ्यास ज़रूर करे।
��हरड़
हर रोज़ एक छोटी हरड़ भोजन के बाद दाँतो तले रखे और इसका रस धीरे धीरे पेट में जाने दे। जब काफी देर बाद ये हरड़
बिलकुल नरम पड़ जाए तो चबा चबा कर निगल ले। इस से आपके बाल कभी सफ़ेद नहीं होंगे, दांत 100 वर्ष तक निरोगी रहेंगे और पेट के रोग नहीं होंगे, कहते हैं एक सभी रोग पेट से ही जन्म लेते हैं तो पेट पूर्ण स्वस्थ रहेगा।
��सुबह की सैर
सुबह सूर्य निकलने से पहले पार्क या हरियाली वाली जगह पर सैर करना सम्पूर्ण स्वस्थ्य के लिए बहुत लाभदायक हैं। इस
समय हवा में प्राणवायु का बहुत संचार रहता हैं। जिसके सेवन से हमारा पूरा शरीर रोग मुक्त रहता हैं और हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती हैं।

✍आयुर्वेदोSमृतानाम्

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