रीठा एक औषधीय गुण

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रीठा' के औषधीय गुण

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आमतौर से रीठा को बाल धोने या शैंपू में प्रयोग से लोग परिचित हैं, परंतु यह विभिन्न रोगों में भी बहुत उपयोगी है, यह कम लोग जानते हैं।हमारे देश में रीठा को अरीठा, कोटाइ, रिटेगाछ, बड़ा रीठा आदि नामों से जानते हैं।

गुणधर्म-यह त्रिदोषनाशक, ग्रहों को दूर करने वाला, तिक्त, कटु, उष्णवीर्य है। कम मात्रा में खाने पर भूख बढ़ाने वाला है। इसका जल पीने से उलटी होती है तथा उलटी होने से विष दूर होता है।



इसके जल का नस्य लेने से मस्तक रोग और आधाशीशी रोग दूर होता है।

प्रयोज्य अंग- फल, छाल और बीज।

मात्रा- काढ़ा 30 से 50 मिली, उलटी के लिए 5 ग्राम चूर्ण। सामान्य मात्रा आधा से 1 ग्राम चूर्ण।

आयुर्वेदिक मत- अफीम, हरताल आदि जिस भी तरह काविष (जहर)शरीर में भर गया हो रीठा का पानी या उसका स्वरस पीने से जहर नष्ट हो जाता है।

हिस्टीरिया, मूर्छा आदि में रीठा का नस्य देने से तुरंत होश आ जाता है।

रीठा के फेन में रूई भिगोकर योनि में रखने से तुरंत प्रसव हो जाता है।



झांई आदि त्वचा विकारों में रीठा का लेप लगाते हैं। सर्प, बिच्छू के दंश में रीठे को खाने योग्य औषधि के रूप में सेवन कराते हैं।

कंठमाला रोग में इसे सिरके में पीसकर लेप करते हैं।मिरगी रोग, सिरदर्द निवारण के लिए इसको पानी में पीसकर नस्य देते हैं।



इससे छींकें आती हैं या नाक से द्रव्य स्रावित होता है, रोग निवारण होता है।

1. बिच्छू के दंश में- कभी-कभी बिच्छू का दंश भी जानलेवा हो जाता है। बिच्छू के दंश के बाद तेज असहनीय दर्द होता है। ऐसी अवस्था में रीठा का सत्त्व 1 ग्राम लेकर पानी में घोलकर पिला दें या 2 ग्राम चूर्ण (रीठा के छिलकों का चूर्ण) पानी में घोलकर पिला दें।



2. अफीम का जहर उतारने के लिए-रीठा को पानी मेंडालकर उबालें। जब झाग आने लगे, तब उस पानी को अफीम खाने वाले व्यक्ति को पिला दें। उलटी lहोंगी और जहर निकल जाएगा।



3. पक्षाघात में-रीठे का छिलका और काली मिर्च बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं और शीशी में भरकर रख लें। यह आवश्यकता पड़ने पर सुंघा दिया करें तो इससे लकवा (पक्षाघात), मानसिक उन्मत्तता, जिसकी सूंघने की शक्ति (घ्राणशक्ति) चली गई हो तथा नींद न आती हो (अनिद्रा) में ये लाभ पहुंचाने वाला सरल प्रयोग है।



4. अधकपारी (आधाशीशी)- आधे भाग में तेज सिरदर्द हो, तब रीठे के छिलके और काली मिर्च को पानी में घिसकर नाक में टपकाने से तुरंत लाभी होता है।



5. बेहोशी (मरूच्छा), हिस्टीरिया और मिरगी में- रीठे के फल की गिरी को पानी में घिसकर 2 या 36 बूंद नाक में टपका दें। इससे बेहोशी दूरहोती है। आंख में भी आंज देते हैं। आंखों की जलन दूर करने के लिए गाय का घी या मक्खन आंख आंजने से शांति मिलती है।



6. प्रसवोपरांत वायु प्रकोप में- प्रसव के बाद वायु प्रकोप होने से स्त्रियों का मास्तिष्क शून्य हो जाता है। आंखो के आगे अंधेरा छाने लगता है। दांतों के दोनों जबड़े भिंच जाते हैं। ऐसे परिस्थिति में रीठे को पानी में घिसकर झाग (फेन) पैदा कर आंखों में आंजने से रीठा जादुई असर दिखाता है। तत्काल रोग निवृत्ति होती है।

7. किडनी (गुरदों के) दर्द में- रीठे का छिलका पींस लें तथा अंदर के बीज (गिरी जिसका काला छिलका हटा दें।) महीन पीसकर पानी से पांच गोली बना लें। 1 गोली सेवन कराएं। एक से राहत न मिले तो फिर 1 गोली और सेवन कराएं।



8. फोड़े-फुंसियों पर- रीठ के छिलके को पीसकर लाल शक्कर मिलाएं तथा साबुन मिलाकर पानी के साथ मलहम जैसा बना लें और दिन में दो बार लगाएं। चमत्कारी लाभी होगा।



10. नजला और जुकाम में- रीठे का तेल पुराने जुकाम के लिए अति उत्तम है। इसे बनाने का तरीका इस प्रकार है। रीठे का छिलका 20 ग्राम, नीम के फल (निबोली) की मिंगी 20 ग्राम लेकर आधालीटर पानी में रातभर भिगोकर रखें। प्रात: कालपीसकर उबालें और आधा पानी शेष रहे, तब 125 मिली, सरसों के तेल में मिलाकर उबालें। जब उतार लें। तेल ठंडा कर शीशी में भरकर रखें। आवश्यकता पड़ने पर 2-3 बूंद इससे लाभ होगा।



11. बालों के रोग में- जूं-लीख मारने के लिए तथा बालों को काले, रेशमी, मुलायम बनाने के लिए उत्तम पाउडर घर में बनाएं।कपूरकचरी, नागरमोथा 10-10 ग्राम और कपूर तथा रीठे की गिरी 40-40 ग्राम, शिकाकाई 150 ग्राम, 200 ग्राम आंवला सबको पीसकर चूर्ण बना लें। सबको मिलाकर रख लें। जब भी उपयोग करना हो, 50 ग्राम चूर्ण लेकर 400 मि.ली. पानी में 30 मिनट तक भिगोकर रखें। 30 मिनट बाद मसलकर छानकर उस पानी से बालों को धोएं।



12. मासिकधर्म की रुकावट में- रीठे के फलों की गरी को पीसकर उसकी बत्ती बनाकर स्त्री की जननेंद्रिय में रखने से मासिकधर्म की रुकावटदूर होती है। प्रसव के समय भी यह बत्ती रखने पर बिना विलंब के प्रसव हो जाता है।

13. दमा एवं कफजनित खांसी में- 5 ग्राम रीठे केछिलके का चूर्ण 250 मिली. पानी में काढ़ा बनाकरपिलाएं। उल्टी होने पर गरम पानी अधिक मात्रा में पिलाएं, जिससे खुलकर उल्टी हों तथा सारा कफ फेफड़े से निकल जाए, जिससे श्वास, खांसी कफजनित से मुक्ति मिल सके।

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