यूरिन टेस्ट रिपोर्ट

��क्या है किड़नी फेल्युअर��
किड़नी फेल्युअर - किड़नी यूरिन (पेशाब) को� छानना बंद कर देती है
किड़नी फेल्युअर 2 तरह का होता है
1. पॉली सिस्टिक किड़नी (PKD) - यह जेनेटिक डिस-ऑडर होता है जिसमें किड़नी में सिस्ट बनने लगते है जिसके कारण किड़नी की कार्य करने की क्षमता धीरे धीरे खत्म होने लगती है
इसका सिर्फ मैनेजमेंट ही संभव है इसे पूर्णत: ठीक नही किया जा सकता
2. क्रोनिक किड़नी डिजीज (CKD) - यह कई कारणों से हो सकती है जिनमें मुख्य है
A. बी.पी. कम ज्यादा होना
B. लम्बे समय से शुगर होना
C. लम्बे समय से थायरॉइड होना
D. लम्बे समय से ड्रग्स का सेवन
E. लम्बे समय से किड़नी में स्टोन का होना
F. लम्बे समय से यूरिन इंफेक्शन का होना

किड़नी फेल्युअर की शुरुआत युरिन में प्रोट्रीन (एलब्युमिन) के जाने से होती है जितनी तेजी से प्रोट्रीन की मात्रा युरिन में बढ़ती है ठीक उतनी ही तेजी से रोग की तीव्रता बढ़ती जाती है जबकि लोग क्रियटिनिन की मात्रा को मुख्य कारण मानते रहते जो कि सही नही है
���क्यों जरुरी है 5 टेस्ट ?
क्योंकि यह 5 टेस्ट आपको आपकी वास्तविक स्थिति बताते है
1. Urine Test (Microscopic + Routine)
यह टेस्ट आपको यूरिन में क्या जा रहा है ये बतलाता है जैसे ब्लड़,पस सेल्स, प्रोट्रीन,बैक्टेरिया आदि
अगर बैक्टेरिया या प्रोट्रीन (एलब्युमिन) प्लस में आता है तो तुरंत उपचार करायें इसे हल्के में न ले यह किड़नी फेल्युअर की शुरुआत कि निशानी हो सकती है
प्रोट्रीन(एलब्युमिन) का जितना ज्यादा प्लस साइन होते है यानि उतनी ही तेजी से प्रोट्रीन पेशाब में जा रहा है और स्थिति उतनी ही गंभीर होती जाती है
2. Urine Micro Albumin Test
यह टेस्ट आपको यूरिन में एलब्युमिन प्रोट्रीन की मात्रा की दर को बतलाता है
एक स्वस्थ्य व्यक्ति में इसकी मात्रा 10-20 होती है अगर रिपोर्ट में इसकी वेल्यु 20 से अधिक हो रही है तो वह किड़नी फेल्युअर की दर को दर्शाती है
इसकी जितनी ज्यादा वेल्यु बढ़ती जाती है ठीक उतनी ही तेजी से किड़नी की कार्य क्षमता कम होती जाती है
पेशाब में प्रोट्रीन के जाने के चलते पैरों में सूजन आना, कमर दर्द के साथ वजन घटना,पैरो में भारीपन और थकान बनी रहना, किड़नी का सिकुड़ना जैसे लक्षण आने लगते है
नोट - हमारी दवायें इसी को कम करने का काम करती है जिस दिन यह (प्रोट्रीन- एलब्युमिन का जाना) नॉर्मल हो जाता है किड़नी भी नॉर्मल हो जाती है
3. Estimated G.F.R. Test
यह टेस्ट आपको किड़नी की युरिन(पेशाब) छानने की दर को बतलाता है जो कि सामान्य व्यक्ति का 90 से ऊपर होता है
अगर यह कम आ रहा है तो आपकी किड़नी पूर्णतः काम नही कर रही है साथ ही यह टेस्ट किड़नी की स्टेज को भी बतलाता है
किड़नी की स्टेज जानने के लिये यह टेस्ट अवश्य करायें इस टेस्ट के बगैर किड़नी की स्टेज का अंदाजा लगाना गलत होगा
4. Serum Creatinin Test
यह टेस्ट ब्लड में क्रियटिनिन (यह यूरिया की तरह शरीर के लिये जहर होता है) की मात्रा को बतलाता है सामान्य व्यक्ति में इसकी मात्रा 1.2 तक मानी गयी है कभी कभी बी.पी. कम ज्यादा होने के चलते यह कम ज्यादा होता रहता है
मगर इसकी मात्रा 2 से अधिक होने पर यह खतरे का सिग्नल होता है क्योकि इसके बढने से बहुत सारी परेशानियां शुरु हो जाती है
जैसे - खाना खाते समय उल्टी आना, मुंह का कडवापन, पेशाब कम बनना
क्रियटिनिन के बढने का मतलब है कि किड़नी अपना काम नही कर पा रही है जिसके चलते क्रियटिनिन पेशाब में जाने कि बजाय खून में ही रुकने लगा है किड़नी फैल की शुरुआत बहुत पहले हो चुकी होती है अर्थात् पेशाब में प्रोट्रीन की शुरुआत होने से, मगर क्रियटिनिन बहुत बाद में बढ़ना शुरु होता है
कभी कभी क्रियटिनिन 2 से 7 के बीच ही बना रहता है और किड़नी 5 स्टेज में पँहुच जाती है
जब कभी अचानक से पेट दर्द या उल्टियाँ होना स्टार्ट होती है या क्रियटिनिन अचानक से 12 से ऊपर पँहुच जाता है तब हम टेस्ट करवाते है तब पता चलता है की किड़नी लास्ट स्टेज में पहुँच गई तब तक बहुत देर हो चुकी होती है उस कंडीशन में डायलिसिस करवा कर ही क्रियटिनिन को कम करने का विकल्प होता है
ऐसी स्थिति से बचने के लिये समय समय पर Estimated G.F.R. कराते रहना चाहिये
क्योंकि 20 से कम G.F.R. वालों में एंव डायलिसिस वाले पेशेंट में रिकवरी बहुत ही धीमे होती है जिसमें सालों लग सकते है
5. Whole Abdomen U.S.G.
यह सोनोग्राफी किड़नी के साथ साथ लीवर,तिल्ली,प्रोस्टेट की स्थिति को बतलाती है
कभी कभी किड़नी के साथ साथ लीवर भी नाजुक स्थिति में आ जाता है ऐसी स्थिति में दी जा रही दवाऐं नहीं पच पाती जिससे रोगी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाता तब किड़नी के साथ साथ लीवर का उपचार भी अनिवार्य हो जाता है
उपरोक्त 5 जाँचों के आधार पर ही हम किड़नी रोगी को उपचार देते है हम अधूरी जाँचों पर किसी भी प्रकार की दवाऐं नहीं देते
नोट - जिन रोगियों को बी.पी. या शुगर या थायरॉइड की समस्या है उनको समय समय पर ये 5 टेस्ट कराते रहना चाहिये
जब भी पेशाब में प्रोट्रीन की मात्रा बढ़ती दिखे तुरंत उपचार लेना प्रांरभ कर दे क्योंकि शुरुआती समय में उपचार होने पर बीमारी जटिल नहीं हो पाती और हम कम समय में ठीक भी हो जाते है अन्यथा गंभीर स्थिती में (क्रियटिनिन 10 से ऊपर होने पर) डायलिसिस या G.F.R. शून्य होने पर किड़नी ट्रांसप्लांट ही विकल्प बचते है
सही समय पर जानकारी और बचाव से हम शरीरिक व आर्थिक क्षति से बच सकते है
��कैसे होती है किड़नी की रिकवरी���
जब दवाओं से पेशाब में प्रोट्रीन का जाना कम होने लगता है या बंद हो जाता है या सामान्य अवस्था में आ जाता है तब शरीर स्वंय किड़नी को हील (ठीक) करने लगता है जिससे किड़नी की कार्य क्षमता बढ़ने लगती है और G.F.R. नॉर्मल की तरफ आने लगता है जिसके चलते क्रियटिनिन कम होने लगता है अर्थात् किड़नी नॉर्मल होने लगती है
इस सम्पूर्ण हीलिंग प्रक्रिया में कम से कम 18 से 30 माह (व्यक्ति विशेष के लिये कम या ज्यादा हो सकता है) का समय हो सकता है

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