ध्यान
ध्यान की विधियां
ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। ध्यान की योग और तंत्र में हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं। यहां प्रस्तुत है ध्यान की सरलतम विधियां, लेकिन चमत्कारिक।
विशेष : ध्यान की हजारों विधियां हैं। भगवान शंकर ने माँ पार्वती को 112 विधियां बताई थी जो 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहित हैं। इसके अलावा वेद, पुराण और उपनिषदों में ढेरों विधियां है। संत, महात्मा विधियां बताते रहते हैं। उनमें से खासकर 'ओशो रजनीश' ने अपने प्रवचनों में ध्यान की 150 से ज्यादा विधियों का वर्णन किया है।
1- सिद्धासन में बैठकर सर्वप्रथम भीतर की वायु को श्वासों के द्वारा गहराई से बाहर निकाले। अर्थात रेचक करें। फिर कुछ समय के लिए आंखें बंदकर केवल श्वासों को गहरा-गहरा लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया में शरीर की दूषित वायु बाहर निकलकर मस्तिष्क शांत और तन-मन प्रफुल्लित हो जाएगा। ऐसा प्रतिदिन करते रहने से ध्यान जाग्रत होने लगेगा।
2- सिद्धासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। चेहरे पर से भी तनाव हटा दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें। यह काफी है साक्षी भाव को जानने के लिए।
3- किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।
4. चौथी विधि क्रांतिकारी विधि है जिसका इस्तेमाल अधिक से अधिक लोग करते आएं हैं। इस विधि को कहते हैं साक्षी भाव या दृष्टा भाव में रहना। अर्थात देखना ही सबकुछ हो। देखने के दौरान सोचना बिल्कुल नहीं। यह ध्यान विधि आप कभी भी, कहीं भी कर सकते हैं। सड़क पर चलते हुए इसका प्रयोग अच्छे से किया जा सकता है।
देखें और महसूस करें कि आपके मस्तिष्क में 'विचार और भाव' किसी छत्ते पर भिनभिना रही मधुमक्खी की तरह हैं जिन्हें हटाकर 'मधु' का मजा लिया जा सकता है।
उपरोक्त तीनों ही तरह की सरलतम ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं। चौथी तरह की विधि के लिए सुबह और शाम के सुहाने वातावरण का उपयोग करें।
ध्यान करने के लिए सबसे उपयुक्त विधि | dhyan ki vidhi 
 -ध्यान में बैठने से पहले आपको सब कुछ शांत करना पड़ेगा, जैसे आसपास का वातावरण, आपका शरीर इत्यादि | आप किसी शांत जगह पर बैठकर आसपास के वातावरण को शांत कर सकते है लेकिन शरीर को शांत करके ध्यान मग्न होना थोडा मुश्किल होता है | जैसे कोई भी पूजा या हवन करने से पहले मन्त्र उपचार होता है जैसे अग्नि शांति, वायु शांति, वनस्पति शांति इत्यादि इसका मतलब यही होता है कि ब्रह्माण्ड में ये सब चीजों को शांत करने के बाद ही पुरे ब्रह्माण्ड में शांति बनायीं जा सकती है और परम आत्मा का वास हो सकता है उसी तरीके से आपको अपने शरीर की इन सब चीजों को शांत करना होगा तभी आप ध्यान कर सकते हो इसके लिए आप आसनों का प्रयोग कर सकते हो आसन करके आप पुरे शरीर को शिथिल करे जिससे भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर जिन चीजों से ये शरीर बना है ये सब शांत हो जाते है और शरीर फिर आराम चाहता है उसके बाद फिर स्वांस को शांत करने के लिए आप अनुलोम विलोम योग करे जिससे आपकी स्वांस शांत होगी उसके बाद शरीर और स्वांस को शांत करने के बाद अपने मस्तिष्क को जाग्रत करने की जरुरत होती है उसके लिए आपको आपने मस्तिष्क को vibrate करना पड़ेगा उसके लिए आप आँख और कान को हाथ की अंगुलियों से बंद करके ॐ शब्द का उच्चारण करो ओ अक्षर को करीब आपनी स्वांस का 25% और म अक्षर को अपनी स्वांस का करीब 75% बोले इससे आपके मस्तिष्क में vibration जैसी क्रिया उत्पन्न होगी इसकी बजह से आपको आपने मस्तिष्क में हल्कापन महसूस होगा उसके बाद सीधे सीधे ध्यान मुद्रा में चले जाय तब आप सही से ध्यान कर पाएंगे ध्यान करते समय आप अपनी आँखों को बंद करके आँखों की पुतलियों को नाक के ठीक ऊपर की तरफ देखने की कोशिश करे जैसे ही आप ध्यान मुद्रा में जायेंगे आपको कुछ रंग दिखाई देंगे आप उन रंगों को आपने मस्तिष्क से सोचकर अपने आप से जोड़ने की कोशिश करे जैसे लाल रंग समझो कि ये आपके शरीर में रक्त संचार हो रहा है उसके बाद जैसे कुछ अन्धकार जैसा दिखाई दे तो समझो ये मेरे रक्त संचार के साथ मेरे शरीर में जो अशुद्धिया है वो है फिर ईश्वर से प्रार्थना करो कि हें परमात्मा जो आपका अंश आत्मा इस शरीर में वास करता है इस शरीर को शुद्ध करने में मदद करे और मेरे ऊपर सकारात्मक उर्जा प्रवाहित करे उसके बाद आपको हरा या सफ़ेद रंग दिखाई देना शुरू हो जायेंगे आप उनपर ही पूरा ध्यान लगाए कि बस परमात्मा आपके अन्दर सकारात्मक उर्जा प्रवाहित कर रहा है उसको ही ध्यान रखते हुए ध्यान लगाए फिर आप कुछ अलग जैसा महसूस करेंगे | करके देखो अच्चा लगता है !!!
अत्यंत सरल ध्यान योग विधि |
कैसे करें ध्यान?
यह महत्वपूर्ण सवाल है। यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसे? सच मानो तो हमें कभी किसी ने नहीं सिखाया की हम कैसे पैदा हों। ध्यान हमारा स्वभाव है, जिसे हमने चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।
ध्यान के शुरुआती तत्व- 
1. श्वास की गति
2.मानसिक हलचल
3. ध्यान का लक्ष्य
4.होशपूर्वक जीना।
उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।
ध्यान योग की सरलतम विधियां | Easiest methods of yoga
श्वास का महत्व :
ध्यान में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है-
1.मनोभाव
2.वातावरण
3.शारीरिक हलचल।
इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है।श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है।
श्वास की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक , मानसिक लाभ मिलता है,
मानसिक हलचल :
ध्यान करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैं, क्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि विचार करते रहते हैं या कि धुन, कल्पना आदि में खो जाते हैं। इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं- पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें। दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णत: स्थिर रखें। तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंद कर सजग हो जाएं। इसी जबरदस्ती न करें बल्कि सहज योग अपनाएं।
निराकार ध्यान :
ध्यान करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।
रोगोपचार की दृष्टि से उपयोगी अन्य प्राणायाम |
आकार ध्यान :
आकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। 'कल्पना ध्यान' को इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हम मन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।
होशपूर्वक जीना :
क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि 'आप' गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।
"सिरदर्द को देखना—( ध्यान )" 
अब जब भी आपको सिरदर्द हो तो एक छोटी सी ध्यान की विधि का प्रयोग करें—सिर्फ प्रयोगात्मपक रूप से—बाद में आप बड़ी बीमारियों में और लक्षणों में भी प्रयोग कर सकते है। 
जब भी आपको सिरदर्द हो, एक छोटा सा प्रयोग करें। शांत बैठ जाएं और उसे देखें, अच्छी तरह से देखें—दुश्मन की तरह नहीं। यदि आप उसे अपने दुश्मन की तरह देखेंगे, तो अच्छे से नहीं देख पाएंगे। आप देखने से बचेंगे। कौन अपने दुश्मन को देखना चाहता है? हर कोई बचता है। शांत बैठ जाएं और सिरदर्द को देखें—बिना किसी भाव के कि वह रूक जाए, बिना किसी इच्छा के, कोई संघर्ष नहीं, कोई लड़ाई नहीं, कोई प्रतिरोध नहीं। शांति से देखते रहें, ताकि यदि वह आपको कुछ कहना चाहे तो कह सके। उसमें कोई सांकेतिक संदेश है। अगर आप शांति से देखते रहे तो चकित हो जाएंगे। पहली बात—जितना ज्यादा आप देखोगे, उतना ज्यादा वह तेज होगा। और आप थोड़े उलझन में पड़ेंगे—यदि सिरदर्द तेज हो रहा है तो यह विधि कैसे मदद करेगी। यह तेज हो रहा है, क्योंकि पहले आप उसे टाल रहे थे। सिरदर्द तो उतना ही था, लेकिन आप उसे टाल रहे थे, दबा रहे थे—एस्प्रोस के बिना भी उसे दबा रहे थे। जब आप उसे देखते है तो दमन हट जाता है। और सिरदर्द अपनी सहज तीव्रता में प्रकट होता है। अब आप उसे खुले कानों से रूई ड़ाले बिना सुन रहे है। पहली बात: वह तेज हो जाएगा। यदि वह तेज हो रहा है तो आप संतुष्ट हो सकते है कि आप ठीक से देख रहे है। यदि तेज नहीं हो रहा है तो अभी आप देख नहीं रहे है; अभी आप टाल रहे है। दूसरी बात—वह एक बिंदु पर सिमट आएगा; वह बड़ी जगह पर फैला हुआ नहीं रहेगा। पहले आपको लगता था कि मेरा पूरा सिर दुःख रहा है। अब आप देखेंगे कि पूरा सिर नहीं, केवल थोड़ी सी जगह पर दर्द है। यह भी एक संकेत है कि आप और भी गहराई से उसे देख रहे है। दर्द कि फैली हुई अनुभूति एक चालाकी है—यह भी उसे टालने का एक ढ़ंग रहा है। दर्द यदि एक ही बिंदु पर हो तो वह और भी तीव्र होगा। तो हम एक भ्रम पैदा करते है कि पूरा सर ही दुःख रहा है। उसे देखें—और वह छोटी से छोटी जगह में सिमटता जाएगा। और एक क्षण आएगा जब वह सुई की नोक जितनी जगह पर सिमट आएगा—अत्यंत घनीभूत, अत्य धिक पैना, बहुत तेज। आपने ऐसा सिरदर्द कभी नहीं जाना होगा। लेकिन बहुत ही छोटी जगह पर सीमित। उसे देखते रहें। 
और फिर तीसरी और सबसे महत्वेपूर्ण घटना घटेगी। यदि आप तब भी देखते ही रहे जब दर्द बहुत तीव्र और सीमित और एक ही बिंदु पर केंद्रित है, तो आप कई बार देखेंगे कि वह खो गया है। जब आपका देखना पूर्ण होगा तो वह खो जाएगा। ओ जब वह खो जाएगा तब उसकी झलक मिलेगी कि वह कहां से आ रहा है—क्याए कारण है। जब प्रभाव खो जाएगा तो आप कारण को देख सकेंगे। ऐसा कई बार होगा फिर सिरदर्द वापस आ जाएगा। जब भी आपकी दृष्टि समग्र होगी, वह खो जाएगा। और जब वह खोता है तो उसके पीछे छिपा हुआ ही उसका कारण होता है। और आप हैरान हो जाएंगे—आपका मन कारण बताने के लिए तैयार है। और एक हजार एक कारण हो सकते है। सबसे वही अलार्म दिया जाता है, क्योंकि अलार्म देने कि प्रणाली सरल है। आपके शरीर में बहुत अलार्म नहीं है। अलग-अलग कारणों के लिए वही अलार्म, वही चेतावनी दी जाती है। हो सकता है हाल ही में आपको क्रोध आया हो और आपने उसे अभिव्यक्तव न किया हो। अचानक वह क्रोध प्रकट होगा। आप देखेंगे अपका सारा क्रोध जो आप मवाद की तरह भीतर ढ़ो रहे है। अब यह भारी हो गया है और यह क्रोध निकलना चाहता है। उसे रेचन की आवश्य़कता है। तो उसे निकाल दें, उसका रेचन कर दें। और तत्क्षाण आप देखेंगे कि सिरदर्द गायब हो गया है। और न एस्प्रोा की जरूरत है, न किसी चिकित्सार की। 
ओशो—( आरेंज बुक )
ध्यान के प्रकार :✨
ध्यान को उनके करने की विधि और उनके ध्यान लगाने वाले केंद्र के अनुसार कई भागो में बांटा गया है जो निम्नलिखित है -
-भृकुटी ध्यान ( Third Eye Meditation ) : इसे तीसरी आँख पर ध्यान केन्द्रित करने वाला ध्यान माना जाता है. इसके लिए व्यक्ति को अपनी आपको को बंद करके, अपना सारा ध्यान अपने माथे की भौहो के बीच में लगाना होता है. इस ध्यान को करते वक़्त व्यक्ति को बाहर और अंदर पुर्णतः शांति का अनुभव होने लगता है. इन्हें अपने माथे के बीच में ध्यान केन्द्रित कर अंधकार के बीच में स्थित रोशनी की उस ज्वाला की खोज करनी होती है जो व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाने का मार्ग दिखाती है. जब आप इस ध्यान को नियमित रूप से करते हो तो ये ज्योति आपके सामने प्रकट होने लगती है, शुरुआत में ये रोशनी अँधेरे में से निकलती है, फिर पीली हो जाती है, फिर सफ़ेद होते हुए नीली हो जाती है और आपको परमात्मा के पास ले आती है.
-श्रवण ध्यान ( Listening / Nada Meditation ) : इस ध्यान को सुन कर किया जाता है, ऐसे बहुत ही कम लोग है जो इस ध्यान को करके सिद्धि और मोक्ष के मार्ग पर चलते है. सुनना बहुत ही कठिन होता है क्योकि इसमें व्यक्ति के मन के भटकने की संभावनाएं बहुत ही अधिक होती है. इसमें आपको बाहरी नही बल्कि अपनी आतंरिक आवाजो को सुनना होता है, इस ध्यान की शुरुआत में आपको ये आवाजे बहुत धीमी सुनाई देती है और धीरे धीरे ये नाद में प्रवर्तित हो जाती है. एक दिन आपको ॐ स्वर सुनाई देने लगता है. जिसका आप जाप भी करते हो. 
ध्यान के विभिन्न प्रकार
-प्राणायाम ध्यान ( Breath Focus Meditation ) : इस ध्यान को व्यक्ति अपनी श्वास के माध्यम से करता है, जिसमे इन्हें लम्बी और गहरी साँसों को लेना और छोड़ना होता है. साथ ही इन्हें अपने शरीर में आती हुई और जाती हुई साँसों के प्रति सजग और होशपूर्ण भी रहना होता है. प्राणायाम ध्यान बहुत ही सरल ध्यान माना जाता है किन्तु इसके परिणाम बाकी ध्यान के जितने ही महत्व रखते है।
-मंत्र ध्यान (Mantra Meditation ) : इस ध्यान में व्यक्ति को अपनी आँखों को बंद करके ॐ मंत्र का जाप करना होता है और उसी पर ध्यान लगाना होता है. क्योकि हमारे शरीर का एक तत्व आकाश होता है तो व्यक्ति के अंदर ये मंत्र आकाश की भांति प्रसारित होता है और हमारे मन को शुद्ध करता है. जब तक हमारा मन हमे बांधे रखता है तब तक हम इस ध्वनि को बोल तो पाते है किन्तु सुन नही पाते लेकिन जब आपके अंदर से इस ध्वनि की साफ़ प्रतिध्वनि सुनाई देने लगती है तो समझ जाना चाहियें कि आपका मन साफ़ हो चूका है. आप ॐ मंत्र के अलावा सो-ॐ, ॐ नमः शिवाय, राम, यम आदि मंत्र का भी इस्तेमाल कर सकते हो.
-तंत्र ध्यान ( Tantra Meditation ) : इसमें व्यक्ति को अपने मस्तिष्क को सिमित रख कर, अपने अंदर के आध्यात्म पर ध्यान केन्द्रित करना होता है. इसमें व्यक्ति की एकाग्रता सबसे अहम होती है. इसमें व्यक्ति अपनी आँखों को बंद करके अपने हृदय चक्र से निकलने वाली ध्वनि पर ध्यान लगता है. व्यक्ति इसमें दर्द और सुख दोनों बातो का विश्लेषण करता है.
-योग ध्यान ( Yoga Meditation ) : क्योकि योग का मतलब ही जोड़ होता है तो इसे करने का कोई एक तरीका नही होता बल्कि इस ध्यान को इनके करने की विधि के अनुसार कुछ अन्य ध्यानो में बांटा गया है. जो निम्नलिखित है -
·चक्र ध्यान ( Chakra Meditation ) : व्यक्ति के शरीर में 7 चक्र होते है, इस ध्यान को करने का तात्पर्य उन्ही चक्रों पर ध्यान लगाने से है. इन चक्रों को शरीर की उर्जा का केंद्र भी माना जाता है. इसको करने के लिए भी आँखों को बंद करके मंत्रो (लम, राम, यम, हम आदि) का जाप करना होता है. इस ध्यान में ज्यादातर हृदय चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना होता है.
·दृष्टा ध्यान (Gazing meditation ) : इस ध्यान को ठहराव भाव के साथ आँखों को खोल कर किया जाता है. इससे अर्थ ये है कि आप लगातार किसी वास्तु पर दृष्टी रख कर ध्यान करते हो. इस स्थिति में आपकी आँखों के सामने ढेर सारे विचार, तनाव और कल्पनायें आती है. इस ध्यान की मदद से आप बौधिक रूप से अपने वर्तमान को देख और समझ पाते हो.
·कुंडलिनी ध्यान ( Kundalini Meditation ) : इस ध्यान को सबसे मुश्किल ध्यान में से एक माना जाता है. इसमें व्यक्ति को अपनी कुंडलिनी उर्जा को जगाना होता है, जो मनुष्य की रीढ़ की हड्डी में स्थित होती है. इसको करते वक़्त मनुष्य धीरे धीरे अपने शरीर के सभी आध्यात्मिक केन्द्रों को या दरवाजो को खोलता जाता है और एक दिन मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. इस ध्यान को करने के कुछ खतरे भी होते है तो इसे करने के लिए आपको एक उचित गुरु की आवश्यकता होती है.
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धन्यवाद और आभार ईश्वर का🙏🙏